All India tv news। उत्तराखंड में इगास बग्वाल का त्योहार बड़े ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली के 11 दिन बाद कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है, जो उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति, वीरता की गाथाओं और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
इगास बग्वाल का इतिहास और महत्व :-
इगास बग्वाल का त्योहार गढ़वाल क्षेत्र में विशेष रूप से मनाया जाता है, जो भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खबर देरी से पहुंचने के कारण मनाया जाता है। इस पर्व के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं और लोक कथाएं हैं, जो इसे एक वीर पर्व और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बनाती हैं।
परंपराएं और आकर्षण :-
इगास बग्वाल के दिन घरों में अरसे, पूड़ी, खीर, जलेबी और अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं, जिन्हें परिवार और पड़ोसी आपस में बाँटते हैं। इस पर्व पर भैलो खेलने की परंपरा भी है, जिसमें जलते हुए बाँस के टुकड़ों को घुमाकर एक-दूसरे के साथ खेलते हैं। यह खेल इस पर्व का मुख्य अंग है और सामूहिक एकता व शौर्य को दर्शाता है।
सांस्कृतिक महत्व :-
इगास बग्वाल केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक है। यह पर्व युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ता है और सामुदायिक एकता का महत्व समझने का अवसर देता है। इस पर्व के दौरान गढ़वाल क्षेत्र में लोकगीतों का विशेष महत्व होता है, जिनमें वीर माधो सिंह की कहानियाँ सुनाई जाती हैं।
उत्तराखंड सरकार का अवकाश :-
उत्तराखंड सरकार ने इगास बग्वाल के अवसर पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है, जिससे लोग इस पर्व को धूमधाम से मना सकें। इस पर्व के दौरान गढ़वाल और कुमाऊँ के ग्रामीण क्षेत्रों में धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है।
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